Sonroopa has a vivid, vibrant and versatile persona. Her love for music and poetry descends from her bloodline . Her Grand father Pandit Bhoop Ram Sharma was a famous Jan kavi and her father Dr.Urmilesh Shankhdhar was one of the greatest poets of contemporary hindi literature .
Sonroopa herself is an acclaimed accomplished poetess and ghazal singer. She has performed at many prestigious events on national and International platforms such as Lal qila mushayara , Sahitya Academy events, events of Indian Society of Authors etc. Internationally she has performed in 24 cities across the USA and Canada in kavi sammelan organised by ' antarrashtriya Hindi Samiti "US".
She has also performed in 12 cities across the UK in kavi sammelan organized by Indian high commission UK & ICCR. She is a known face on Indian television, literary magazines and Indian newspapers. She is a very famous, elegant and a class apart respected poetess of contemporary Indian literature.
सोनरूपा, एक ऐसी लड़की जिसमें बचपना अभी तक उछाल मारता है, एक ऐसी स्वप्न छवि जो हक़ीक़त का हाथ नहीं छोड़ती, एक ऐसी नदिया जिसकी कल-कल आज में समाहित होना चाहती है, एक ऐसी हवा जो ख़ुशबू को अपनी सहचरी बनाती है, एक ऐसी मिट्टी जिसमें संवेदना के बीच स्वयमेव अंकुरित होते रहते हैं, एक ऐसी आँच जो मन के दीवर् में ज्योति बनकर मुस्कुराती है और क्या-क्या कहूं अपनी इस सोनचिरैया सी बिटिया के बारे में।
वह जब पर फैलाती है तो आकाश गाने लगता है, वह जब ठुमकती है तो धरती का कण-कण घुँघरू बनकर नाचने लगता है जब मुस्कुराती है तो चमन के फूल खिल उठते हैं चलती है तो हर मौसम उसका स्वागत करता है।
रूप, कला, गला से युक्त युवती ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। उसमें भी अगर काव्य-चेतना और सृजन-प्रतिभा हो, तो उसे कई पीढ़ियों की अविरल साधना की उपलब्धि मानी जानी चाहिए।
हिन्दी में ऐसे कई प्रतिष्ठित साहित्यकार हुए हैं, जिनकी संतानों ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा किया। मगर सोनरूपा डॉ उर्मिलेश की मात्र संतान नहीं, उनके सुनहरे सपनों की विलक्षण आकृति है। उसका काव्य अंतर्मन का कोमलतम और सुंदरतम मृग-शावक है, जिसकी हर भंगिमा द्रष्टा को मोहती है, अभिभूत करती है।
सोनरूपा को पढ़ना जितना सुखद है, उससे कहीं ज्यादा उसे सुनना आनंदित करता है। वे उसका मोहक काव्यपाठ आपको थोड़ी देर के लिए उस दिव्यलोक की सैर करा देता है, जो हमारे भीतर ही है, मगर चिर उपेक्षित है। इसी रस को हमारे आचार्य ब्रह्मानंद सहोदर मानते हैं। लेकिन यदि वह संभव नहीं हो तो इसकी कविताओं को पढ़ते हुए भी आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है।
सोनरूपा अपनी रचनाओं में विवादी दुनिया से उठ कर जीवन के संवादी स्वर को साधती है।
बदलते समाज में नारी की व्यथा-कथाओं को नया स्वर देने वाली सक्षम लेखनी का नाम है सोनरूपा विशाल।
प्रेम-संबंधों में उलझी अपेक्षाओं की सुलझी और सुरीली समझ है इस लेखनी के पास। वह बड़ी शालीनता से एक तथ्य को रेखांकित करती है कि कोई भी गीत जीवन-गीत तब बनता है जब दोनों अपने संयुक्त अंतर्मन पर मिलकर सतिए बनाएं, एक लय और एक ताल में मिलकर गाएं।
मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं।
सोनरूपा विशाल की रचनाशीलता में मुझे कविता की एक उजली विरासत साँस लेती हुई सी स्पष्ट नज़र आती है।
वह अपने गीतों और ग़ज़लों में न केवल अपना समय दर्ज़ करती हैं वरन सामान्य आदमी के पक्ष में भी अपनी आवाज़ बुलंद करती है। उनकी गुनगुनाहट में हमारा देश काल और समूचा परिवेश ही गुनगुनाता हुआ सा महसूस होता है।
बदायूं में जन्मी सोनरूपा विशाल हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में अपनी सुनिश्चित पहचान रखती हैं।
उनके पहले संग्रह 'लिखना ज़रूरी है' को ग़ज़ल के क्षेत्र में उनकी शानदार पहल माना गया। मानवीय संबंधों, जीवन-संसार और सुख-दुख के तमाम पहलुओं को सोनरूपा जिस शिद्दत और संवेदना के साथ ग़ज़लों में पिरोती हैं वह काबिले ग़ौर है।
गीतकार पिता डॉ उर्मिलेश के गुणसूत्रों का वहन करने वाली सोनरूपा मंचों पर भी लोकप्रिय हैं तथा उनकी वाचिक अदायगी मंचों पर विवस्त्र जाती शायरी और कविता के बीच एक नाजुक संतुलन साधने का काम करती है। कहना न होगा कि कथ्य कल्पना और यथार्थ के सहकार से उपजी संवेदना को जीवंत रचनाकार सोनरूपा ग़ज़लों की नई इबारत लिखने में संलग्न हैं।