पिछले बरस का गुलमोहर

हम सोचते हैं कि कविता शब्दों से लिखी जाती है जबकि ऐसा नहीं कविता व्यक्तित्व लिखता है।शायद इसीलिए 'पिछले बरस का गुलमोहर' के अधिकतर गीतों में मैंने प्रेम के कलश की स्थापना कर उसे पूजा है।क्यों कि पूरी क़ायनात के लिए प्रेम का सर्वोपरि होना बहुत ज़रूरी तब जब मानवता आख़िरी साँसें गिन रही है ऐसे समय में प्रेम, सद्भाव, औदार्य न रचूँ तो क्या रचूँ ?

अमेरिका और 45 दिन

कवि सम्मेलनों की शृंखला में 2018 में अमेरिका जाना हुआ। नया परिवेश,नई सँस्कृति,स्थानीय लोग,नए सफ़र अनुभवों की पाठशाला की तरह होते हैं।इन्हीं पाठशालाओं में पढ़े कुछ रोचक,कुछ यादगार,कुछ ज्ञानबर्धक पाठों को कलमबद्ध करती रही।भारत वापस आयी तो देखा ये तो कई पन्ने लिख गए फिर  मन हुआ कि इन्हें एक जिल्द में बाँध दिया जाए और तैयार हो गयी 'अमेरिका और पैंतालीस दिन'

लिखना ज़रूरी है

'लिखना ज़रूरी है' मेरी पहली किताब है इनकी ग़ज़लों की जड़ कमज़ोर हैं या गहरी इनसे इत्तेफ़ाक़ ना रखूँ तो ये ग़लत तो होगा लेकिन ये मेरे एहसास की शिद्दत हैं,मेरे रंग,कुछ देखे समझे तमाशे,धुँध में से रौशनी को देखने की हसरत,निजत्व की तलाश, आस पास का परिवेश,शिकन,हरारतें,उल्लास तो जैसी भी हैं बहुत कोरी हैं।इन ग़ज़लों में कभी मैंने अपनी सोच को स्व से सर्व होते हुए और कभी सर्व से स्व होते हुए महसूस किया है